पैसे का मनोविज्ञान (The Psychology of Money) हमें बताती है कि इंसान और पैसे के बीच जटिल सम्बन्ध होता है। इसके कारण कई बार पैसे के मामले में हम अपनी समझ से काम लेने की जगह अपनी भावनाओं को हावी हो जाने देते हैं और तर्कहीन तरीक़े से सोचने और काम करने लगते हैं। इसी मानव आचरण का विश्लेषण देते हुए लेखक (Morgan Housel) ने हमारी सोच को बेहतर बनाने का प्रयास किया है। इस लेख में हम इस किताब में दिए गए कुछ विचारों पर चर्चा करेंगे।
The Utility of Money (पैसे की उपयोगिता)
व्यक्ति जब समय के साथ धन इकट्ठा करता जाता है, तो धीरे-धीरे बाद में आने वाले अतिरिक्त धन की उपयोगिता कम होती जाती है। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति 10 हज़ार रुपय कमाता है, और वो 15 हज़ार कमाने लगे तो उसके जीवन में इस अतिरिक्त 5 हज़ार रुपय से काफ़ी सार्थक सुधार आ सकते हैं। जैसे, अपने भोजन की गुणवत्ता में सुधार करना, बीमार होने पर एक बेहतर डॉक्टर का खर्च वहन कर पाना, अगर बहुत कम जगह में रह रहें हो तो थोड़ी खुली जगह में रह पाना।
लेकिन अगर कोई व्यक्ति पहले से ही 10 लाख रुपय हर महीने कमाता है, और वो 15 लाख कमाने लगे, तो उस अतिरिक्त 5 लाख से उसके जीवन में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं आ पाएगा। उसके पास पैसा तो बढ़ता रहेगा, पर चूँकि उसका उसका जीवन स्तर पहले से ही लगभग श्रेष्ठतम है, तो उसमे और सुधार की गुंजाईश ही नहीं बचेगी ।
ध्यान रखिये कि यहाँ हम सार्थक सुधारों की बात कर रहे हैं। अगर कोई कहे कि मैं स्टील की थाली की जगह सोने की थाली में खाना खाने लगा, या 50 लाख की गाड़ी की जगह 1 करोड़ की गाड़ी में घूमने लगा, तो इसे आप सार्थक सुधार नहीं कह सकते क्योंकि इससे उसके जीवन स्तर में मौलिक रूप से कोई परिवर्तन नहीं आएगा।
तो हमेशा इस बात से अवगत रहें कि एक सीमा के बाद आप कितना भी पैसा और कमा लें, इससे आपको कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलेगा।
पैसे की सबसे बड़ी उपयोगिता बस यही है कि वो आपके जीवन में स्वतंत्रता ला सकता है। मजबूरी में आपको अनचाहा काम न करना पड़े, आप अपने पसंद का काम करने के लिए आजाद रहें, जब चाहें अपने परिवार और खुद के लिए समय निकाल सकें। बस इससे अधिक पैसा आपको और कुछ नहीं दे सकता। और जब आप अपने समय का अपने हिसाब से इस्तेमाल कर पाएंगे तो आप कफी हद तक खुश भी रह सकेंगे। इसलिए आपके पैसे का सबसे अच्छा उपयोग यही है कि वो आपको स्वतंत्र बनाए।
Social Comparison (सामाजिक तुलना)
दुनिया के अधिकतर लोग ये नहीं जानते कि उन्हें कितने पैसे कमाने की जरूरत है। इसलिए वे सामाजिक तुलना कर के अपने पैसे की आवश्यकता का आँकलन करते हैं। वे बस ये देखते हैं कि उनके दोस्त, उनके रिश्तेदार, उनके पडोसी कितना कमा रहे हैं, और फिर उन सब से ज्यादा या उनके बराबर कमाने का लक्ष्य बना लेते हैं। लेकिन इस तरीक़े में समस्या ये है कि इस दुनिया में लखपति भी बहुत हैं, करोड़पति भी बहुत हैं और अरबपति भी बहुत हैं। तो आप कब तक इन सब से आगे जाने के लिए दौड़ते रहेंगे? जीवन तो आपके पास एक ही है, इस दुनिया में समय भी आपके पास सीमित है। ऐसे में दौड़ते-दौड़ते आपका पूरा जीवन ही निकल जाएगा और आप चैन की सांस ही नहीं ले पाएंगे।
सामाजिक तुलना करने की जगह आप अपनी असली ज़रूरतों को समझिए और उनके हिसाब से अपनी आमदनी बनाने की कोशिश कीजिए। जब एक अच्छा जीवन-स्तर बन जाए तो फिर जीवन के जरूरी आयामों पर भी ध्यान देना शुरू कीजिए। जैसे अपना परिवार, दोस्त, शौक, अपना आत्म-सुधार, मानसिक शांति, स्वास्थ्य, या फिर जीवन का एक बड़ा उद्देश्य
अर्थात् अपनी जरूरतों की अच्छी तरह से पूर्ति हो जाने के बाद पैसे के परे सोचना शुरू कीजिए और अपने जीवन को एक बड़ा नजरिया दीजिए ।
The Luck Factor (भाग्य कारक)
किसी भी व्यक्ति की वित्तीय सफलता या असफलता में भाग्य और जोखिम बहुत बड़े कारक होते हैं। बिल गेट्स आज कंप्यूटर की दुनिया का सबसे बड़ा नाम अवश्य हैं, परंतु उनकी सफलता में भाग्य का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उनका दाख़िला जिस हाई स्कूल में हुआ था, वो उस समय दुनिया का एक मात्र ऐसा हाई स्कूल था, जिसके पास एक कंप्यूटर था। 1968 में आम लोग कंप्यूटर का मतलब भी नहीं जानते थे, पर फिर भी उस स्कूल के गणित के अध्यापक ने बहुत मुश्किल से स्कूल के लिए कंप्यूटर की व्यवस्था की । इसके बाद भी कंप्यूटर की पढ़ाई को स्कूल ने अपने पाठ्यक्रम में सम्मलित नहीं किया था। परंतु 13 वर्ष की आयु के बिल गेट्स फिर भी अपने दोस्त पॉल एलन के साथ उस कंप्यूटर तक पहुंचें और आगे क्या हुआ ये बताने की आवश्यकता ही नहीं है।
अब जरा सोचिए, यूएन की रिपोर्ट के अनुसार, 1968 में दुनिया में पढ़ाई करने की आयु वाले करीब 303 मिलियन बच्चे थे, जिनमे से केवल 18 मिलियन यूएस में रहते थे। बिल गेट्स की वाशिंगटन स्टेट में उनमे से केवल 2,70,000 बच्चे थे जिनमे से केवल एक लाख सिएटल एरिया में थे। उन एक लाख में से भी केवल 300 बच्चे उस हाई स्कूल में गए और उनमे से एक थे बिल गेट्स। मतलब हर 10 लाख में से केवल एक ही बच्चे की किस्मत ऐसी थी जो ऐसे स्कूल में जा सकता जिसके पास कंप्यूटर लेने के लिए पैसा और बड़ी सोच, दोनो एक साथ थी।
तो अगर आप अमीर बनना चाहते हैं तो बड़े-बड़े अरबपतियों से प्रेरणा ना लें क्योंकि उनके जितना बड़ा भाग्य मिलना लगभग असंभव है। इसकी जगह ऐसे तरीके अपनाएँ जिनमे वेल्थ क्रिएशन की अच्छी-ख़ासी संभावना हो, जैसे दीर्घकालिक निवेश, या फिर कोई ऐसा व्यवसाय शुरू करें जो पोर्टर के 5 फोर्स वाले मॉडल को या 5 मार्केट मस्ट हैव्स वाले मॉडल को पूरा करे। इन दोनो विषयों पर आपके लिए मैंने पहले ही वीडियो बनाए हैं, आप उन्हें नीचे दी गयी लिंक्स के माध्यम से देख सकते हैं।
The Psychological Toll of Long-term Investment (दीर्घकालिक निवेश का मनोवैज्ञानिक कर)
पिचले खंड में हमने बात की कि वेल्थ क्रिएशन के हमें ऐसे तरीके चुनने चाहिए जो आम तौर पर सफल हो ही जाते हैं। और ऐसे तरीकों की सूची में सब से पहले हमारे दिमाग में आता है दीर्घकालिक निवेश और उसी के साथ बात शुरू हो जाती है वॉरेन बफ़ेट की। वॉरेन बफ़ेट ने हमें दिखाया है कि आप एक औसत निवेशक ही क्यों ना हो, पर अगर आप अपने निवेश को लम्बे समय तक बनाए रखेंगे तो आपका पैसा कंपाउंड होता ही चला जाएगा।
वारेन बफ़ेट के निवेश की वृद्धि लगभग 20% प्रति वर्ष से हुई है, जो काफी अच्छी है पर बहुत ज्यादा असामान्य नहीं है। उनकी तुलना में हेज फंड मैनेजर जिम सिमंस ने 66% प्रति वर्ष की वृद्धि हासिल की है। लेकिन इसके बाद भी जिम सिमंस वॉरेन बफ़ेट से 75% कम अमीर हैं। इसका कारण ये है कि वॉरेन बफ़ेट ये 20% का सालाना रिटर्न लगभग 80 साल से ले रहे हैं। उन्होंने 11 साल की उम्र में ही निवेश करना शुरू कर दिया था। सिमंस को अभी इसका आधा समय ही हुआ है। तो वॉरेन बफ़ेट केवल ज्यादा समय निवेशित रहकर दुनिया के सबसे अमीर लोगो की लिस्ट में आ गए।
पर ये बात सुनने में जितनी आसान लगती है उतनी है नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि आपके निवेश के जीवनकाल में कई तरह की स्थितियां आती हैं जो आपको मार्केट से पैसे निकालने के लिए मजबूर करती हैं। उदाहरण के लिए, कोविड की शुरुआत में दुनिया भर के मार्केट इतने भयानक गिरे कि अच्छे-अच्छे निवेशकों के पासीने छूट गए। क़र्ज़ ले कर अल्प-क़ालीन निवेश करने वालों के पास तो घाटा लेने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था। ऐसे ही जब मंदी का दौर चलता है तो बाजार कई सालो तक मुनाफ़ा ही नहीं देता और निवेशक को शक होने लगता है कि कहीं उन्होंने शेयर बाजार में पैसे डाल कर गलती तो नहीं कर दी?
वहीं जब मार्केट अपनी ऊंचाइयों को चूत है तो लोग ललाच में आकर अपने जीवन की पूरी कमाई मार्केट में डाल देते हैं, फिर मार्केट गिर जाता है तो उसके उठने का इंतजार करते रहते हैं। लेकिन फिर एक समय पर जब पैसे की जरूरत आती है तो फिर गिरे हुए मार्केट से घाटे में पैसा निकलते है।
इसलिए अगर आपके पास सब्र है तो ही लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट किजिये और बीच में पैसा निकालने के लिए कभी मजबूर न होना पड़े इस बात को ध्यान में रखिए। मार्केट हमेशा आपकी भावनाओं और मानसिक प्रबलता को चुनौती देता रहेगा। और इस सारे तनाव को झेलने के लिए आप तैयार होंगे तभी दीर्घकालिक निवेश आपके काम आ पाएगा
Long-term Investment is not Risk-free Investment (लंबी अवधि का निवेश जोखिम-मुक्त नहीं है)
जब लोग लम्बी अवधि का निवेश करने के लिए मार्केट में घुसते हैं तब उन्हें एक गलत धारणा ये रहती है कि उनके सारे स्टॉक्स लम्बे समय में अच्छा मुनाफ़ा ही देंगे। जबकि अगर हम वॉरेन बफ़ेट को ही देखें तो पाएंगे कि उनके 400-500 स्टॉक में से कुछ 10-12 शेयर ने ही बहुत असाधारण मुनाफ़े दिए हैं। उनके साथी चार्ली मुंगर खुद बताते हैं कि अगर आप बर्कशायर हैथवे के कुछ शीर्ष निवेश हटा दे तो उनकी कंपनी का ट्रैक रिकॉर्ड बस ठीक ठक ही निकल कर आएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि बड़ी से बड़ी नामी गिरामी कम्पनियाँ भी असफल हो सकती हैं। एटलस साइकिल, वीडियोकॉन, यस बैंक जैसे बहुत से स्टॉक की कीमत का इतिहास देख कर आप इस बात को खुद समझ सकते हैं।
इसलिए अगर आप लम्बी अवधि का निवेश करते भी हैं तो ये हमेशा याद रखें कि आपके बहुत से निर्णय गलत सबित होंगे ही। लेकिन अगर उन्हीं में से कुछ ही असाधारण रूप से सफल हो जाते हैं तो आप काफी प्रॉफिट बना सकते हैं।